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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?

अथवा 
"कबीर का व्यक्तित्व अनेक रूपों में उभरा है इस तथ्य के आलोक में कबीर के विचारक, भक्त, समाज सुधारक" आदि संघर्षशील जीवन का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

संत कबीर एक क्रान्तिकारी कवि थे। परम्परा में आने वाली समस्त मान्यताओं को किस प्रकार के युग अनुकूल परिवर्तित किया जा सकता है या किस सीमा तक उनका खंडन-मंडन किया जा सकता है, यह अंतदृष्टि कबीर में थी। यह ठीक है कि उन्हें शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला था। लेकिन उन्होंने भारतीय जनमानस को समझा और जाति भेद और कर्मकाण्डों का विरोध करते हुए ऐसे विश्व धर्म की कल्पना की जिसमें विविध वर्गों के लोग बिना किसी बाधा के रह सकें।

कबीर का आविर्भाव काल 15वीं शताब्दी था। इससे पूर्व ही धार्मिक और सामाजिक समस्यायें जटिल रूप धारण करती आ रही थीं। नाथ सम्प्रदाय ने अपने युग की विषमताओं को दूर करने के उपाय सोचे, किन्तु वे आध्यात्मिक क्रियाओं तक ही सीमित रह गये और युग की समस्याओं पर प्रखरता के साथ चोट न कर सके। फलतः ये समस्यायें ज्यों-की-त्यों ही रह गईं। कबीर ने अपने युग की स्थिति को समझा और मानव धर्म को बचाने के लिए कहा कि ईश्वर एक है। मुसलमान और ब्राह्मण भले ही विविध नामों से अपने ब्रम्हा की पुकारें तथापि उनमें ईश्वर में किसी प्रकार का भिन्नता नहीं है। सत्य एक है भले ही सम्प्रदाय भिन्न हो। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा

हम तो एक-एक कर जाना।
दोय कहै तिनको है दो जग, जिन नाहीं पहचाना॥
एक पवन एक ही पानी, एक जोति संसारा॥
एक ही खाक धड़े सब भाड़े एक ही सिरजन द्वारा॥

कबीर ने इस समस्या का प्रतिपादन किया कि कर्मकांडियों ने ही जातियों और धर्मों के बीच में विभाजक रेखायें खींच दी है। यदि कर्मकाण्ड हटा दिये जाये तो सत्यमूक्त रूप में एक ही होगा। नतीजन एक नामों से पुकारे जाने वाले धर्म और दर्शन एक ही रूप में होंगे। इसलिए उन्होंने मानव धर्म की भलाई के लिए कर्मकांड पर प्रहार किया -

दखिन देस हरी का बासा, मछिम अलह मुकामा।
दिल महिं खोज, दिलै दिल खोजंह, एही ठउर मुकामा॥

समाज का सम्बन्ध एक ओर राजनीति से है तो दूसरी ओर धर्म से है। राजनैतिक परिस्थितियाँ अव्यवस्थित होती हैं तो समाज के आचरण और व्यवहार में भी उच्छृंखलता आ जाती है। अधिकांश विदेशी आक्रमणकारी अपार धन-सम्पत्ति लूटकर भोग-विलास में लीन हो जाते थे। चारों ओर विलासिता का वातावरण तैयार कर रहे थे, जिसके कारण समाज का पतन हो रहा था। कबीर ने लोगों को अपनी भाषा में सचेत किया -

कबीर गरबु न कीजिए, चाम लपेटे हाड़।
हयबर ऊपर छत्र-तट, ते पुनि धरती गाड़।

इस साखी में वैभव के प्रति कबीर ने व्यंग्य किया है। कनक और कामिनी के विरोध में कबीर ने अपनी वाणी में जो प्रखरता उत्पन्न की है। वह साधना पक्ष के इस नियम के समर्थन में भले ही हो किन्तु वह तत्कालीन समाज पर प्रकारान्तर से प्रकाश डालती है। समाज को पतनोन्मुख करने वाले वैभव को जमकर भोगने वाले लोगों को वे सावधान करते हुए कहते हैं -

एक कनक अरूकामनी, दोऊ अगनि की झाल।
देखें ही तन प्रजक्तै, परस्या है पैमाल।
कबीर भग की प्रीतड़ी, केते गये गंड़त।
केते अजहूँ जाइसी, नर कि हंसत हंसत।

कबीर ने जिन कड़े शब्दों में स्त्री में आसक्ति की निन्दा की है उससे अधिक कोई कर भी नहीं पा रहा था, किन्तु कबीर की यह वाणी उस समाज तक ही सीमित रह गई थी, जिसमें वे उठते-बैठते थे।

कबीर का दृष्टिकोण एक उपदेशक का सा है। वे समाज सुधारक पहले हैं, कवि बाद में। ब्राह्मण ने जन्म के आधार पर अपनी श्रेष्ठता प्रतिपादित कर रखी थी। भले ही उनका आचरण कितना निम्न न हो। कबीर का मानना था कि एक बिन्दु से निर्मित पंच तत्व युक्त मानव शरीर है। सबका निर्माता एक ही ब्रम्हा रूपी कुम्भकार है। सबकी जन्मदात्रियाँ भी एक सी हैं, फिर भी जन्म के आधार पर यह कैसा भेद? इसलिए तो वे कहते हैं -

जो तू ब्राम्हन ब्राम्हनी जाया।
आन बात है, क्यों नहीं आया॥

जहाँ उन्होंने ब्राह्मणों क छुआछूत आदि व्यर्थ के नियमों पर कुठाराघात किया वहाँ उन्होंने पंडितों की 'नौ कनौजिये, तेरह चूल्हे' वाली प्रवृति पर भी तीव्राघात किया छुआछूत के कबीर कट्टर विरोधी थे। ब्राह्मण, शूद्रों की छाया तक से घृणा करते थे। कबीर ने उस वर्ग को, जो पूर्णरूपेण इन पंडितों के प्रपंच में पिस रहा था, मुक्त किया। उन्होंने ब्राह्मण समाज में सीधा सा एक प्रश्न किया।

हमारे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध।
तुम कैसे ब्राह्मण पांडे हम कैसे सूद॥

ब्राह्मण और शूद्र की ही नहीं उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच वैमनस्य और भेद-भाव की खाई को पाटने का स्तुत्य प्रयास किया है। उन्होंने दोनों जातियों की कुप्रवृत्तियों की ओर संकेत कर, दोनों जातियों में सहृदयता स्थापित करने का प्रयास किया है।

ना जाने तेरा साहिब कैसा है।
मसजिद भीतर मुल्ला पुकारै, क्या साहिब तेरा बहिरा है।
चिउंटी के पग बेबर बाजे, सो भी साहिब सुनता है।
पंडित होय के आसन मारे, लम्बी माला जपता है।
अंदर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहिब लखता है।

दर्शन और धर्म के क्षेत्र में भी कबीर ने बड़ा काम किया है। उनके समय में जनता नाना धर्म साधनाओं की बाह्यडम्बरता में डूबी जा रही थी। इन विभिन्न धर्म साधनाओं का परिचय स्वयं कबीर ने दिया है।

अस भूले षट दरसन भाई। पाखंड भेष रहे लपटाई।
जैन वोध और साकत सैना। चारवाक चतरंग विहूना।
जैन जीव की सुधि ना जाने। पाती तोरी दैहें आने।

कबीर ने मधु मक्षिका के समान समस्त साधनाओं व समस्त धर्म का सार लेकर जनता को धर्म का ऐसा रूप दिखाया जाये जो सर्वग्राह्य एवं सर्वसुखकारी था। धर्म के इस सर्वजन सुलभ स्वरूप को प्रस्तुत करने में कबीर को पूर्व स्थापित धार्मिक विचारधाराओं के आडम्बरों का खंडन करना पड़ता था। उन्होंने हिन्दू-मुसलमान दोनों धर्मों के ठेकेदारों को बुरी तरह फटकारा -

जो रे खुदाय मसीत बसतु है, अवर मुलुक किह केरा।
हिंदू मूरति नाम निवासी, दुहमति ततुन हेरा।
कबीर का वैष्णवों के प्रति लगावा रहा किन्तु उनके दोष दर्शन भी पीछे नहीं रहे।
वैष्नो भया तो क्या भया, बूझा नहीं विवेक।
छाया तिलक बनाह कर, दग्धया लोक अनेक।
पूजा, तीर्थ, व्रतादि का भी उन्होंने खुलकर विरोध किया है -
पूजा, सेवा, नेम व्रत गुड़ियन का सा खेल।
जब लग पिंड परसै नहीं तब लग संशय मेल।
योगियों तथा हठयोगियों आदि की आलोचना की
सहज सहज सब ही कहैं, सहज न चीन्हें कोय।
जो कबीर विषया तजै, सहज कही जै सोय।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि कबीर ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों और धर्मों में बसी विद्रूपता पर अँगुली ही नहीं रखी बल्कि उसकी तीव्र शब्दों में भर्त्सना की। अज्ञानाधंकार दूर करने का प्रयत्न भी किया उनके इन प्रयत्नों से शक्ति सम्पन्न वर्ग नाराज हो गया इसलिए उन्हें शासकों के अत्याचार सहने पड़े। हाथ पैर बधवाकर हाथी के पैरों तले रौंदे जाने का प्रयत्न तथा पुनः जंजीर में जकड़कर गंगा में फेंक देने के प्रयत्नों की ओर तो कवि स्वयं ही उल्लेख किया है इसलिए लगता यह है कि कबीर को इसी कारण काशी छोड़कर मगहर में वास करना पड़ा, जहाँ वे शान्तिपूर्वक अपने प्राण त्याग सके। कबीर आजीवन समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार दूर करने का प्रयत्न करते रहे वे विचारक और भक्त थे किन्तु उन्होंने समाज सुधार का भी कार्य किया। इसलिए वे मुख्य रूप से समाज सुधारक के रूप साहित्य में दिखाई देते हैं। पर उनका कवि पक्ष भी कमजोर नहीं था। कुछ आलोचकों ने उनके कवि के रूप में भूरि- भूरि सराहना की है। उन्हें जनवादी कवि तक की संज्ञा दी, अलबत्ता उनका समाज सुधारक रूप भी समाज में ग्राह्य है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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